गांधी जयंती पर डॉ. प्रवीण जोशी की पुस्तक 'गांधीजी का आध्यात्मिक मानवतावाद' का लोकार्पण


उज्जैन। महात्मा गांधी ने लोक कल्याण, सेवा भाव और उदार धर्म दृष्टि के माध्यम से अध्यात्म की पहचान की और इसी के माध्यम से मानवतावाद को सिद्ध किया, जिसका पालन सत्य और अहिंसा के साथ जीवनभर गांधीजी करते रहे। उनके रोम रोम में अध्यात्म बसा रहा।
यह बात उज्जैन के पूर्व कुलपति पाणिनी संस्कृत विश्वविद्यालय एवं उज्जैन के पूर्व संभागायुक्त डॉ. मोहन गुप्त ने मुख्य अतिथि के रूप में कही। वे देवास रोड स्थित कालिदास अकादमी में डॉ. प्रवीण जोशी की महात्मा गांधी पर लिखी पुस्तक 'गांधीजी का आध्यात्मिक मानवतावाद' के विमोचन समारोह को संबोधित कर रहे थे।
सारस्वत अतिथि विश्व हिन्दी साहित्य परिषद के अध्यक्ष डॉ. आशीष कंधवे ने कहा कि मानवतावाद धर्म निरपेक्ष होता है। यह हित, नैतिकता और न्याय का पक्ष है। गांधीजी में अध्यात्म के गुण मौजूद थे। गांधीजी मजदूर के बारे में भी सोचते थे और पूंजीपति के बारे में भी सोचते थे। उनका स्वरूप विराट था। गांधीजी की सोच पूरी संस्कृति को विकसित करती है। हम नई पीढ़ी से गांधीजी को पूर्ण रूप से नहीं जोड़ पा रहे हैं। गांधीजी को जीवित रखने के लिए नई पीढ़ी को जोड़ना होगा।
शिक्षाविद् बृजकिशोर शर्मा ने उन्हें भावांजलि अर्पित करते हुए कहा कि गांधीजी ने ऐसा काम किया जो विश्व इतिहास की सदी में किसी ने नहीं किया। प्रवीण जोशी ने गांधीजी पर महत्वपूर्ण कृति लोकार्पित की है।
चिंतनशील व्यंग्यकार डॉ. पिलकेन्द्र अरोरा ने कहा कि पिता वो होता है जो अपने पुत्रों की समृद्धि की कामना करता है। गांधीजी सभी के लिए सोचते थे। हिन्दू के लिए भी, मुस्लिम के लिए भी, सभी को वे समान स्नेह रखते थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने गांधीजी को महात्मा से संबोधित किया था। गांधीजी विचारों का समुद्र है। डॉ. अरोरा ने कहा कि डॉ. जोशी ने समुद्र में मोती निकाल कर माला बनाई है और पुस्तक को मोतियों की माला के रूप में सबके सामने प्रस्तुत की है। उन्होंने कहा कि अगर कोई अध्यात्मिक नहीं है तो वह मानवतावादी नहीं हो सकता।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शिव चौरसिया ने कहा कि आज उनका लेखक के रूप में जन्म हुआ है। डॉ. जोशी सौभाग्यशाली हैं, जिनकी पुस्तक के विमोचन समारोह में ख्याति प्राप्त विद्वान पधारे हैं।
सर्वप्रथम डॉ. प्रवीण जोशी ने उद्बोधन में कहा कि उन्होंने कई पड़ाव झेलकर पुस्तक का निर्माण किया है। उन्होंने पुस्तक लिखते समय गांधीजी की पुस्तक सत्य के प्रयोग का भी अध्ययन किया। गांधीजी का कहना था कि जो सिद्धांत स्वयं पर लागू कर सकते हैं, वही सिद्धांत समाज के सामने रखना चाहिए। उन्होंने गांधीजी की सादगी पर कहा कि गांधीजी जमीदार परिवार में पैदा हुए और ५० वर्ष की आयु में चरखा चलाना सीखा। पूर्व में अतिथियों ने माँ सरस्वती के चित्र के समक्ष द्वीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। लोकार्पण समारोह का संचालन व्याख्याता डॉ. सदानंद त्रिपाठी ने किया। आभार डॉ. प्रवीण जोशी ने माना।