आबकारी विभाग कर रहा करोड़ों का घपला

सरकार को रोज लग रह करोड़ों का चूना, एमएसपी से ज्यादा ले रहे दाम



उज्जैन। मध्यप्रदेश में शराब बिक्री को लेकर प्रदेश सरकार ने आबकारी विभाग पर भरोसा जताते हुए जहां-जहां टेंडर निरस्त हुए है वहां वहां आबकारी अधिकारी कर्मचारी और नगर सैनिकों को तैनात कर शराब बिक्री की प्रक्रिया शुरू की है जिसे कुछ आबकारी अधिकारियों ने कमाई का जरिया बना लिया है। सरकार के स्पष्ट निर्देष है कि शराब की बिक्री एमएसपी मिनिमम सेलिंग प्राइस पर की जाए लेकिन आबकारी की टीम उसे कहीं एमआरपी तो कहीं एमएसपी से अधिक कीमत पर बेच रही है, देशी की क्वार्टर पर 5 से 10 रुपये अधिक लिए जा रहे हैं तो विदेशी की बोतल पर 100-200 रुपये तक ज्यादा राशि वसूली जा रही है जो सीधे आबकारी अधिकारियों की जेब में जा रहा है। उज्जैन के नानाखेड़ा और नागझिरी पर 50 रुपये के क्वार्टर के 55 और 50 रुपये तक लिए जा रहे हैं वहीं 125 की बीयर 140-150 तक बेची जा रही है वहीं 180 की बीयर के 240 रुपये तक लिए जा रहे हैं। 700-800 की बोतलें 1000 तक बेची जा रही है। इस तरह का गोलमाल हर बोतल, क्वार्टर और हाफ पर किया जा रहा है जिससे आबकारी को रोजाना सरकार को देने के अतिरिक्त लाखों रुपये बच रहे हैं, जिसे वे आपस में बांट रहे हैं, ऐसा एक जागरूक नागरिक करण परमार और अन्य का कहना है, इन्होंने नानाखेड़ा और नागझिरी की सरकारी दुकानों पर जाकर रेट तलाशे और इसकी जानकारी आबकारी अधिकारियों को भी दी।
न रेट लिस्ट, न नगर सैनिक : इस पूरे गोलमाल को करने के लिए आबकारी अधिकारी सुनियोजित प्लानिंग कर रहे हैं, दुकानों पर जान बूझकर रेट लिस्ट नहीं लगाई गई है और न ही एमएसपी रेट पर शराब देने के बोर्ड लगाया है साथ ही नगर सैनिक को भी दुकानों के बाहर बैठाया जा रहा है ताकि उन्हें ये गोलमाल समझ नहीं आये। खबर में कुछ वीडियो भी डाले गए है जिनमें दुकानों पर बैठे कर्मचारी खुद आबकारी अधिकारी श्री पचौरी के कहने पर अधिक रेट लेने की बात कह रहे हैं। मामले में श्री पचौरी अनभिज्ञता जता रहे हैं। उनका कहना है कि एमएसपी रेट ही लिया जा रहा है जबकि ग्राहक चीख-चीख कर अधिक रेट लेने की बात कह रहे हैं। ये पूरा घालमेल अकेले उज्जैन में नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में चल रहा है, जिससे न सिर्फ सरकार बल्कि आम जनता से भी छलावा हो रहा है और आबकारी के अमला करोड़ों के वारे न्यारे कर रहा है और शिवराज मामा को अलग बदनाम करवा रहा है। हालांकि अब कुछ दुकाने ठेकेदारों को दे दी गई है लेकिन अब भी कई दुकानें आबकारी चला रहा है जिस पर रेट अधिक लिया जा रहा है।
ठेकेदार भी कमा रहे मुनाफा
शहर में कुछ दुकानें शासकीय कर्मचारियों के भरोसे चल रही हैं। यहां पर हालात यह है कि अन्दर शासन द्वारा चलाई जा रही दुकानों में ठेकेदार के कर्मचारी ही काम कर रहे हैं। वो लोग अपने हिसाब से रेट तय कर शराब बेच रहे हैं। ठेकेदार द्वारा चलाई जा रही शराब दुकानों पर एमआरपी से भी अधिक रुपए लिए जा रहे हैं। यह हाल केवल उज्जैन शहर के नहीं हैं, आसपास के जिलों, कस्बों में भी यही हाल हैं। यहां पर एक बॉटल पर 150 से 200 रुपए अधिक मूल्य वसूला जा रहा है। जबकि नियम के मुताबिक एमआरपी से अधिक में शराब नहीं बेची जा सकती है।