महाकाल मंदिर में श्रद्धालुओं का प्रवेश पर मनमर्जी के नियम, दुकानदार की स्थिति बनी
-ऑनलाइन बुकिंग करने वाले श्रावण में प्रतिदिन दर्शन के इच्छुकों से चौकी कर्मी और सुरक्षाकर्मियों की अभद्रता


उज्जैन। श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रयोग की अधर्मशाला बना दी गई है। मंदिर में श्रावण में प्रतिदिन के इच्छुक ऑनलाइन बुकिंग करने वाले श्रद्धालुओं से चौकी कर्मी और सुरक्षाकर्मी अभद्रता करते हैं और सेटिंगबाजों से कोई परिचय नहीं मांगा जाता। श्रद्धालुओं के प्रवेश पर तत्काल मनमर्जी के नियम लादे जाते हैं। जैसे कोई दुकानदार अपना सामान इच्छा के भाव पर बेचता है।

श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के नाम पर सिर्फ ढकोसला बन कर रह गई है। ९ जुलाई को जिस दिन दुर्दांत अपराधी विकास दुबे ने वीआईपी टिकट लेकर प्रवेश किया, उस दिन ऑनलाइन बुकिंग श्रद्धालुओं से कोई परिचय पत्र नहीं मांगा गया न ही उसके एक दिन पहले और न ही एक दिन बाद। आकस्मिक रूप से रविवार को ऑनलाइन बुकिंग करने वाले श्रद्धालु जब दर्शन के लिए पहुंचे तो उनसे आधार कार्ड मांगे गए। हाल यह थे कि जिसने 'एप्रोच' का परिचय दे दिया उसे प्रवेश मिल गया और जो साधारण श्रद्धालु था, उसे बेरंग दुत्कार कर बाहर कर दिया गया। श्रद्धालुओं ने जब सवाल किया कि आकस्मिक यह कौन सा नियम है, इसकी पूर्व ऑनलाइन सूचना क्यों नहीं दी गई तो चौकी सुरक्षाकर्मी और सिक्युरिटी गार्ड का कहना था कि रात को ही हमें आदेश मिले हैं। तड़के ५.३० बजे की बुकिंग के आधार पर पहुंचे श्रद्धालुओं इस बात के साथ बाहर किया जाने लगा तो कुछ श्रद्धालुओं ने नेता बनाम प्रबंध समिति के जमाइयों के फोन लगवा दिए। उन्हें अंदर प्रवेश करवा दिया गया। इसके उलट साधारण श्रद्धालु को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। सुरक्षा के दृष्टिकोण से मंदिर प्रबंध समिति को ऑनलाइन सूचना में ही ओरिजनल आधार कार्ड अनिवार्य स्पष्ट किया जाना चाहिए था।


पूर्व में भस्मारती और दर्शन की व्यवस्था में एक व्यक्ति के आधार कार्ड पर उसके साथ के अन्य लोगों को प्रवेश दिया जाता रहा है। ऐसे में आकस्मिक प्रत्येक व्यक्ति से आधार कार्ड मांगकर शेष लोगों के आधार कार्ड न होने पर उन्हें बाहर किया जाना भगवान के घर में अन्याय, अनीति की दुकान चलाने जैसा है। खास बात तो यह है कि लॉकडाउन के बाद महाकाल मंदिर प्रबंध समिति ने अब तक अपने किरायेदारों का किराया माफ नहीं किया है। जबकि बाहर प्रशासन और सरकार मकान मालिकों से किराया माफ करने की बात कर रही है। साफ है उद्योग की मानसिकता के साथ प्रबंध समिति का संचालन किया जा रहा है। इसमें वही सब कुछ हो रहा है जो एक दुकानदार अपने व्यवसाय के लिए करता है।

चंचलप्रभा महिला मंडल की महिलाएँ श्रावण की शुरुआत से ही प्रतिदिन ऑनलाइन बुकिंग कर तड़के के समय दर्शनों के लिए मंदिर पहुंच रही थी। इन महिलाओं को रविवार को सुबह नित नए नियमों के तहत प्रवेश नहीं दिया गया। जबकि सभी महिलाएँ उज्जैन की होकर प्रतिदिन दर्शन के लिए पहुंंच रही थी। ऐसे में सिक्युरिटी गार्ड और चौकी सुरक्षाकर्मियों को श्रद्धा और भावना के तहत व्यवस्था करते हुए दर्शन करवाना थे। भगवान के घर दर्शन का मूल है, वहाँ देव-दानव-असुर सब बराबर है। भगवान के घर के बाहर मानसिकता और न्यायिक स्थिति मायने रखती है। भगवान शिव मानव ही नहीं, दानव, असुर, नाग, गंधर्व, किन्नर सभी के लिए पूजनीय है। ऐसे में बाबा महाकाल के दर्शन से चाहे कोई भी हो, उसे वंचित नहीं किया जा सकता है। मंदिर प्रबंध समिति अपने नियमों के तहत सुरक्षा की व्यवस्था करें, लेकिन अगर श्रद्धालु के साथ अभद्रता और उसकी धार्मिक भावनाओं को आघात पहुंचाया जाता है तो यह स्थिति किसी भी हाल में धार्मिक नहीं कही जा सकती है। सनातन धर्म में वैसे भी भाव और भावनाओं को अमूल्य स्थान दिया गया है।


चंचलप्रभा महिला मंडल की अध्यक्ष चंचल श्रीवास्तव ने साफ तौर पर हिदायत देते हुए मंदिर प्रबंध समिति को चेताया है कि अगर इस प्रकार के मामलों की पुनरावृत्ति सामने आई तो महिला मंडल उस तरीके से विरोध दर्ज कराएगा, जो इनकी करनी और कथनी को पूरी तरह से उजागर कर देगा। अगर दमदार प्रबंध समिति है तो और भगवान के सही मायनों में सेवा कर रहे हैं, तो २००७ से लेकर अब तक हुए अन्न चोरी, मंदिर के नोटों की गिनती में चोरी, तांबा चोरी, फर्जी वेबसाइट से दान चोरी सहित तमाम मुद्दों को उजागर कर लें। सुरक्षा के नाम पर आम श्रद्धालु को आहत न करें। प्रशासक को हमारी ओर से चुनौती है कि वे इन मामलों का खुलासा कर दें, फिर आम श्रद्धालुओं की सेवा भावना की डींग हांके।