उत्तर छायावादी काव्य धारा के प्रमुख कवि - डॉ. शिवमंगलसिंह 'सुमन'

नाग पंचमी पर सुमन जी के जन्मदिवस पर विशेष

आधुनिक हिन्दी काव्यधारा भारतेन्दु युग से प्रारम्भ होती है। भारतेन्दु युगीन काव्यधारा के प्रमुख कवि भारतेन्दु हरीशचंद्र, द्विवेदी युगीन काव्यधारा के प्रमुख कवि राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त और फिर छायावादी युग और छायावादी युग के प्रमुख कवि चतुष्टय प्रसाद, पंत निराला और महादेवी। इतिहासकारों ने छायावादोत्तर काव्यधारा के अंतर्गत ही उत्तर छायावादी काव्यधारा का विभाजन किया जिनमें प्रमुख कवि श्री नरेन्द्र शर्मा, डॉ. हरिवंश राय बच्चन, पं. रामेश्वर शुक्ल अंचल और डॉ. शिवमंगलसिंह सुमन है। बाद में नरेन्द्र शर्मा फिल्म जगत में चले गये और छायावादी युग की त्रयी रह गई - बच्चन, अंचल और सुमन। सुमन ने 1940 में जो लिखना शुरू किया उज्जैन में कुलपति बनने के बाद भी 90 तक लिखते रहे और 'अज्ञेय जी' ने एक बार कहा था कि सुमनजी कुलपति नहीं बने होते तो साहित्य जगत की और अधिक सेवा करते। 1940 में उनका पहला काव्य संग्रह 'हिल्लोल' आया जिसकी दो पंक्तियाँ सुमनजी को बहुत प्रिय थी- 'मेरे उर में जो निहित व्यथा, कविता तो उसकी एक कथा।' दूसरा काव्य संग्रह 'जीवन के राग' (1941) में प्रकाश में आया। इसी की वे प्रसिद्ध पंक्तियाँ जो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 13 दिनों के बाद गिरी हुई सरकार के समय पढ़ी थी- क्या हार में क्या जीत में, किंचित नही भयभीत में। संघर्ष पथ पर जो मिला, यह भी सही वह भी सही। वरदान मांगूगा नहीं। उस रात सुमनजी के पास विश्व के अनेक देशों के साहित्यकारों के फोन आते रहे और सुबह पाँच बजे घूमते हुए मित्रों के साथ वे पचासों मित्रों के बधाई देने वालों के नाम बताते रहे और आनंद मनाते रहे। तीसरा काव्य संग्रह 'प्रलय सृजन' (1945) में आया इसकी प्रसिद्ध पंक्तियाँ हैं - 'जो पथ पर बैठा वही मिटा, चलने वालों का नाम यहाँ।' चौथा काव्य संग्रह 'विश्वास बढ़ता ही गया' (1955) में आया इसकी पंक्तियाँ वे अक्सर गुनगुनाया करते थे - 'पथ की सरलता देखकर, दो चार डग जब बढ़ गया। तब दृष्टि पथ के सामने आकर हिमालय अड़ गया, पथ के अथक अभ्यास पर, विश्वास बढ़ता ही गया।'
पाँचवा काव्य संग्रह 'पर आँखें नही भरी' (1964) में प्रकाश में आया जिसकी प्रसिद्ध पंक्तियाँ 'कितनी बार तुम्हें देखा, पर आँखें नहीं भरी' भी वे मंच से झूम-झूम कर सुनाया करते थे। छठा काव्य संग्रह 'विंध्य हिमालय' (1966) में प्रकाशित हुआ जिनकी पंक्तियाँ हमारे जैसे उनके भक्त आज भी सुनाया करते है। 'मैं क्षिप्रा सा सरल तरल बहता हूँ, मैं कालिदास की शेष कथा कहता हूँ, मुझे न मृत्यु भी भय दिखला सकती, मैं महाकाल की नगरी में रहता हूँ।' सातवाँ काव्य संग्रह 'मिट्टी की बारात' (1972) में प्रकाश में आया जिसमें पं. कमला नेहरू और पं. जवाहरलाल नेहरू को दी गयी श्रद्धांजलियाँ है 'मेरा वीर जवाहर मुझको वापस दे दो' कविता वे अक्सर सुनाया करते थे। आठवाँ काव्य संग्रह 'वाणी की व्यथा' (1980) में प्रकाश में आया। 'लीलता हर किरण कण को, स्वार्थ का खग्रास, शील संयम आचरण, चरने गए है घास।' नवाँ काव्य संग्रह 'कटे अंगूठों की वंदन वार' (1991) में प्रकाशित हुआ। सुमन जी का समग्र साहित्य (पद्य और गद्य साहित्य) वाणी प्रकाशन से 'सुमन समग्र' शीर्षक से प्रकाशित हुआ, जो कई खण्डों में प्रकाशित है।
उत्तर छायावादी काव्य त्रयी बच्चन-अंचल-सुमन को छायावादी काव्य त्रयी प्रसाद-पंत-निराला की तरह हिन्दी साहित्य जगत एवं हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध इतिहासों में गौरवशाली स्थान प्राप्त है।
डॉ. हरिमोहन बुधौलिया
पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष हिन्दी अध्ययनशाला
विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन