आरटीआई को मजाक बनाया वन विभाग ने

वन संरक्षक ने आवेदन स्वीकारा, वन मंडलाधिकारी कार्यालय ने हस्ताक्षर अभाव में वापस किया
उज्जैन। शासकीय विभागों में अनियमितता और भ्रष्टाचार के खुलासे आरटीआई के तहत हो रहे हैं। इसी कारण से आरटीआई आवेदन को शासकीय विभागों में मजाक बना कर रख दिया गया है। न कोई सुनने वाला है, न ही कोई कार्रवाई करने वाला और घुटना पेट की तरफ ही झुक रहा है। ऐसा ही एक उदाहरण हालिया स्थिति में वन विभाग से निकलकर सामने आया है, जिसमें वन संरक्षक ने आवेदन स्वीकार कर वन मंडलाधिकारी को भेजा। वन मंडलाधिकारी ने हस्ताक्षर अभाव में आवेदक को वापस भेज दिया।
सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आरटीआई आवेदक ने वन विभाग में सिंहस्थ-२०१६ के तहत हुए कार्यों का विवरण मांगा था। इसमें विभाग के रेंजरों के माध्यम से एफडीए राशि का विभागीय सूत्रों के अनुसार ४ साल बाद भी हिसाब-किताब नहीं हुआ है। न ही जिन रेंजरों ने इसका पैसा लिया था, उसका हिसाब विभाग को दिया है। इसमें बड़े घोटाले की आशंका की स्थिति बनी हुई है। इसी के चलते आरटीआई आवेदक ने संबंधित मुद्दे के दस्तावेजों की माँग लोक सूचना अधिकारी वन संरक्षक कार्यालय को आवेदन करते हुए की थी। चूँकि मामला वन मंडल उज्जैन से संबंधित था, इसलिए वन संरक्षक कार्यालय से आवेदन स्वीकार करते हुए मूलत: उसे वन मंडल को भेजा गया था। वन मंडल ने आवेदक को दस्तावेज उपलब्ध कराने की जगह उसमें कमियाँ निकालने में भिड़ गए और आवेदक के हस्ताक्षर न होने की स्थिति में आवेदन मूलत: आवेदक को वापस कर दिया गया। इसके पीछे कारण यह है कि जिन रेंजरों को एफडीए की राशि दी गई थी, उनमें से दो हाल ही में सेवानिवृत्त होने वाले हैं। जैसे भी हो, तीस दिन की अवधि व्यतीत कर संबंधित रेंजर अपने आपको विभागीय अधिकारियों के साथ मिली भगत कर बचाना चाह रहे हैं, जबकि मामला लाखों रुपए की हेराफेरी से संबंधित है और विभागीय नियमानुसार अधिकारियों ने इनको न तो नोटिस दिए हैं और न ही इन मुद्दों पर जवाब लेते हुए संबंधितों के खिलाफ कार्रवाई ही की गई है। सिंहस्थ के समय आपाधापी में जमकर अनियमितताएँ की गई हैं। दस्तावेज सामने आने पर यह सब स्पष्ट हो सकता है। इसी से बचने के लिए यह कृत्य किया जा रहा है। आवेदक हस्ताक्षर के साथ पुन: इन दस्तावेजों की माँग करेगा।