"सर्वजन के सच्चे जनसेवक थे स्वर्गीय महेंद्र सिंह कालूखेड़ा"

आज हमें 3 वर्ष बीत चुके हैं हमारे ठाकुर "साहब" को खोए हुए, इतने वर्षों तक उनका स्नेह, विश्वास व आशीर्वाद हमें मिलता रहा जो हमारे लिए निरन्तर सामर्थ्य के रूप में स्थापित रहा। हम भलीभाँति जानते हैं वे आसमान से भी हमारे लिए प्रेम व आशिष की बरसात कर रहे हैं। 

लोग कहते हैं वे अपने पीछे बहुत कुछ छोड़ गए लेकिन मैं कहता हूँ वो चाहे जो छोड़ गए पर मूलरूप से वो एक विशाल जनसमुदाय को पारिवारिक रूप से जोड़ गए, ऐसा इसलिए कि उन्होंने कभी भी राजनीतिक रूप से जनता से जुड़ाव को तवज्जो नहीं दी बल्कि वे तो केवल पारिवारिक जुड़ाव को अपने जीवन में आत्मसात करते थे और इसी के परिणामस्वरूप आज जो भी लोग उनके अनुज श्री केके सिंह कालूखेड़ा व परिवार से जुड़े हैं वे निजी सम्बंधों की पर आधारित हैं। उनके लिए व्यक्तिगत व पारिवारिक सम्बन्ध पहले व राजनीति बाद के क्रम पर रही।

कृषि, शिक्षा, सहकारिता, श्वेत क्रांति के साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में उनके अमूल्य योगदान, कार्य करने की क्षमता व समर्पण भाव से सब वाकिफ़ भी हैं और जानते हैं कि उनसे बेहतर कोई नहीं हो सकता। एक विलक्षण प्रतिभा के धनी ऐसे महान व्यक्तित्व के बारे में लिखने पर भी मेरे हृदय में जो परोक्ष भाव हैं उसे मैं सिर्फ महसूस कर सकता हूँ, लिख नहीं सकता। सीमित शब्दों में उनकी व्याख्या संभव ही नहीं क्योंकि वो शख्सियत ऐसी थी कि उनके द्वारा किये गए अनेकों कार्यों ने देश की कायापलट कर उद्धार के मार्ग पर पहुंचाया हैं। हम जानते हैं देश की मिट्टी सोना उगलती हैं लेकिन मेरे गाँव की मिट्टी ने तो सर्वगुणसम्पन्न "हीरा" देश को दिया जो आज भी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से इतिहास के पटल व जनमानस के मनमस्तिष्क पर चमकता हैं।

हमारे मन में उनका सम्मान व स्थान ईश्वर तुल्य हैं क्योंकि उन्होंने "जनसेवा ही सर्वोपरि" भाव को जीवन में स्थान दिया व गरीबों का सहारा बनकर विकास के मसीहा के रूप में स्थापित हुए। उनके लिए ये कभी मायने नहीं रखता था कि लोग उनके लिए कैसा सोचते हैं अपितु उनके विचार तो उनके विरोधियों के लिए भी बेहद सकारात्मक व सरल ही रहे। इसीलिए तो उन्हें राजनीति का अजातशत्रु कहते हैं क्योंकि उनके विरोध में खड़ी पंक्ति में भी उनके मुरीद पाए जाते थे। आज की राजनीति का परिदृश्य बदल चुका हैं लेकिन फिर भी अगर युवाओं के मन में जनसेवा का भाव राजनीति से बढ़कर हैं तो उन्हें अवश्य स्वर्गीय कालूखेड़ा की तार्किक शक्ति, सतत सक्रियता व जनहितैषी दूरगामी सोच से प्रेरणा लेनी चाहिए।

सिंधिया राजवंश से तीन पीढ़ियों तक पारिवारिक सम्बंध उन्होंने बड़ी शालीनता व सम्मान से निभाये, आज के दौर में ऐसा व्यक्ति नहीं मिल सकता जो अपने निजी मूल्यों से ज्यादा सम्बंधों के प्रति वफादार व सजग रहे। 

स्वर्गीय राजमाता सिंधिया जी, स्वर्गीय माधवराव सिंधिया जी व श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया जी ने उनको हर प्रकार की सलाह, परामर्श व निर्णय में हमेशा सहयोगी रखा।

संसद में सबसे ज्यादा प्रश्न करने वाले सदस्य, मध्यप्रदेश विधानसभा के उत्कृष्ट सदस्य व विश्वविद्यालय में शीर्ष पर रहकर स्वर्णयुक्त होने वाले स्वर्गीय कालूखेड़ा के लिए राजनीति की राह जरूर काँटोंभरी रही हो लेकिन उनकी दृढ़निश्चयता व मजबूत इरादों ने कभी उनके कदम नहीं डिगने दिए बल्कि वे तो और भी निखरकर दुगनी क्षमता से सामने आए।

गाँव से आँखों में राष्ट्रसेवा का जज़्बा लेकर निकले, सपनों को पंख देकर हवा में उड़ान भरी, शिक्षा की महत्ता व छात्र समस्याओं को समझते हुए विश्वविद्यालय में नेतृत्व किया व फिर राजनीति के बेहद उलझे हुए अखाड़े में भी अपना दम दिखाया व एक प्रखर वक्ता, गम्भीर विचारक व विकासपुरुष बने।

उन्होंने जनता को जितना प्रेम दिया उससे ज्यादा उनको जनता ने समर्पित भाव से स्नेह प्रदान किया जबकि राजनीतिक क्षेत्र में रहकर ये हासिल करना सामान्यतः असंभव सा हैं।

उनसे सम्बंधित लोग उनको बहुत याद करते हैं और हमेशा उनके लिए हृदय में सम्मान रखते हैं लेकिन साथ ही साथ उनकी कमी जीवन में एहसास कराती रहेगी कि हम अधूरे हैं, हो सके तो लौट आइए "साहब"।

 

"मन में आशाएं विलुप्त हैं, प्रगाढ़ दर्द भी पिघलता हैं,

वे क्यों नहीं साथ यहाँ, यही एक दंश हैं जो खलता हैं।"

 

श्रद्धानवत नमन

सादर श्रद्धांजलि "साहब"