राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की परिवार शाखाओं में बनाई डॉ. आंबेडकर की जयंती


उज्जैन। कोरोना वायरस के वैश्विक संक्रमण के चलते भारत में भी लॉक डाउन चल रहा है। इसी कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा नियमित चलने वाली संघ की शाखाओं को परिवार शाखा के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। प्रत्येक स्वयंसेवक घर में परिवार के समयानुकूल शाखा लगा रहा है जिसमें परिवार के सभी सदस्य भाग ले रहे हैं। उज्जैन महानगर में ऐसी 448 और उज्जैन विभाग में ऐसी 1817 परिवार शाखाएं वर्तमान में लग रही हैं।
पूज्य बाबा साहब अम्बेडकर के विचार अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे इस हेतु विभिन्न नगर, जिला व विभाग केंद्रों पर संघ बाबा साहब अम्बेडकर के जीवन पर कई व्याख्यान माला/कार्यक्रमों का भी आयोजन वर्षों से करते आ रहा है।
इस वर्ष लॉकडाउन होने के कारण मालवा प्रांत में स्वयंसेवकों की परिवार शाखा में डॉ. अम्बेडकर की जयंती मनाई गई। प्रत्येक परिवार शाखा में व्यक्तिगत गीत, अमृत वचन, डॉ. अम्बेडकर के चित्र पर माल्यार्पण किया गया। तत्पश्चात स्वयंसेवकों के लिए मालवा प्रांत के प्रांत संघचालक डॉ. प्रकाश शास्त्री ने वीडियो के माध्यम से बौद्धिक दिया।
उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर के आदर्शों पर, उनके समरसता के मंत्र पर सभी को चलना चाहिए। मंदिर, जलाशय और श्मशान सभी के लिए होना चाहिए। वास्तव में देखा जाए तो भगवान बुद्ध के बाद धर्म, समाज, राजनीति और आर्थिक धरातल पर सामाजिक क्रांति लाने का कार्य अगर किसी ने किया है तो वो है डॉ. आंबेडकर। बाबा साहब ने समाज को दोषमुक्त बनाने के लिए जीवन भर संघर्ष किया और इसलिए वो महात्मा बुद्ध के उत्तराधिकारी है।
हम सभी के लिए ये भी अत्यंत सौभाग्य की बात है कि उनका जन्म मालवा प्रांत के महू में ही 14 अप्रैल 1891 में हुआ था। उनके पिताजी सेना में कार्यरत थे, इसलिए उनका बचपन का कुछ समय महू में ही बीता। सामाजिक भेदभाव की  कठिन परिस्थितियों में उनका जीवन प्रारंभ हुआ।
1897 में बाबा साहब अम्बेडकर के पिताजी सेवानिवृत्त हुए उसके पश्चात पूरा परिवार महाराष्ट्र के सतारा जिले में रहने चला गया। कुछ समय वहां अध्ययन करके बाबा साहब अपनी आगे की पढ़ाई करने मुंबई और उसके पश्चात विदेश गए। भारत लौटने के पश्चात अपनी उच्च शैक्षणिक योग्यता के बावजूद जातिगत भेदभाव का सामना उन्हें हर स्थान पर करना पड़ रहा था।
जब देश आजाद हुआ तो देश के पहले कानून मंत्री बाबा साहब बने। बाबा साहब केवल उपेक्षित समाज के नहीं अपितु पूरे देश के सभी वर्गों के नेता थे।
बाबा साहब को संविधान सभा का चेयरमैन बनाया गया तो उन्होंने उन्होंने कड़ा परिश्रम करके संविधान का ड्राफ्ट तैयार किया। बाबा साहब अम्बेडकर की योग्यता के आधार पर उन्हें राज्यसभा लाया गया और वहां वो हिंदू कोड बिल लाए। सबसे अच्छी बात थी कि उन्होंने महिलाओं को पूरा अधिकार प्राप्त हो समानता का अधिकार प्राप्त हो इस बात पर भी संघर्ष किया।
1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार किया। उन्हें सेमेटिक धर्म के लोग पीछे पड़कर प्रलोभन दे रहे थे पर उन्होंने सारे प्रलोभनों को ठुकरा कर हिंदू धर्म की ही एक शाखा, बौद्ध धर्म को स्वीकार किया।
बाबा साहब का पूरा जीवन राष्ट्र को समर्पित था। उन्होंने एक लंबे समय समरसता का भाव देश में आए इसके लिए संघर्ष किया।
डॉ. आंबेडकर ने तीन सिद्धांतों पर हमेशा जोर दिया- व्यक्ति की स्वतंत्रता, समता और बंधुता। ये भगवान बुद्ध के विचारों से लिए गए थे, जिस पर डॉ. आंबेडकर का पूरा जीवन एक तपस्या के रूप में चला।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी इन तीन आधारों पर 1925 से निरंतर कार्य करता आ रहा है। वास्तव में डॉ. आंबेडकर समरसता का जो व्यवहार समाज में देखना चाहते थे, वह संघ की शाखा में और स्वयंसेवक के परिवार में दिखता है।
आज के समय में समरसता के लिए बाबा साहब अम्बेडकर हम सभी के आदर्श है। प्रान्त संघचालक के उद्बोधन के पश्चात समरसता मंत्र भी दोहराया गया। उनकी जयंती के अवसर पर उज्जैन महानगर की 1655 परिवार शाखाओं में और उज्जैन विभाग की 5430 परिवार शाखाओं में पूज्य बाबा साहब की जयंती बनाई गई।